हॉकी – भारत का राष्ट्रीय खेल 1 एक स्वर्णिम अध्याय है

जब भी भारत के राष्ट्रीय खेल की बात आती है, तो हमारे मन में सबसे पहले हॉकी का नाम आता है। यह खेल भारतीय खेल इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है और इसने हमारे देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अद्वितीय पहचान दिलाई है। हालांकि आधिकारिक तौर पर भारत सरकार ने किसी खेल को राष्ट्रीय खेल घोषित नहीं किया है, लेकिन फील्ड हॉकी को परंपरागत रूप से भारत का राष्ट्रीय खेल माना जाता है। यह खेल न केवल हमारी खेल संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, बल्कि यह भारतीय गौरव और उत्कृष्टता का प्रतीक भी है।

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हॉकी

हॉकी का इतिहास और भारत से इसका जुड़ाव

हॉकी का इतिहास हजारों साल पुराना है। विभिन्न संस्कृतियों में स्टिक और बॉल के खेल के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन आधुनिक हॉकी का विकास 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन में हुआ। भारत में हॉकी का आगमन ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ, जब अंग्रेज सैनिकों और अधिकारियों ने इस खेल को यहां लोकप्रिय बनाया। हॉकी

20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत ने इस खेल को अपनाया और जल्द ही इसमें महारत हासिल कर ली। 1928 से 1956 के बीच भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में लगातार छह स्वर्ण पदक जीतकर विश्व में अपना दबदबा स्थापित किया। यह वह दौर था जब भारतीय हॉकी को ‘स्वर्णिम युग’ कहा जाता था।

भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग

भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग 1928 से 1980 तक फैला हुआ है। इस दौरान भारत ने कुल आठ ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते। 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में भारत ने अपना पहला स्वर्ण पदक जीता, और उसके बाद 1932, 1936, 1948, 1952, 1956, 1964 और 1980 में भी यह उपलब्धि दोहराई। यह अभूतपूर्व सफलता थी जिसने भारत को हॉकी की महाशक्ति बना दिया।

मेजर ध्यानचंद – हॉकी के जादूगर

भारतीय हॉकी के इतिहास में मेजर ध्यानचंद का नाम सबसे चमकीला सितारा है। उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाता है और वह भारतीय खेल जगत के सबसे महान खिलाड़ियों में से एक हैं। ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था। उनकी बॉल कंट्रोल करने की क्षमता इतनी अद्भुत थी कि विरोधी टीमें अक्सर उनकी हॉकी स्टिक को चेक करती थीं, यह सोचकर कि शायद उसमें कोई चुंबक लगा हो।

ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाए। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारत ने फाइनल में जर्मनी को 8-1 से हराया था, जिसमें ध्यानचंद ने तीन गोल दागे थे। कहा जाता है कि हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मनी के लिए खेलने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। भारत में उनके जन्मदिन 29 अगस्त को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

भारतीय हॉकी की प्रमुख उपलब्धियां

भारतीय हॉकी टीम ने अपने शानदार इतिहास में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं:

  • ओलंपिक में 8 स्वर्ण पदक: यह विश्व रिकॉर्ड है और कोई भी अन्य देश हॉकी में इतने ओलंपिक स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया है।
  • 1975 विश्व कप विजेता: कुआलालंपुर में आयोजित पहले हॉकी विश्व कप में भारत ने पाकिस्तान को हराकर खिताब जीता।
  • एशियाई खेलों में स्वर्ण: भारत ने तीन बार एशियाई खेलों में हॉकी में स्वर्ण पदक जीते हैं।
  • चैंपियंस ट्रॉफी में सफलता: भारत ने 2016 में चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीता था।
  • 2020 टोक्यो ओलंपिक में कांस्य: 41 साल बाद भारत ने ओलंपिक में पदक जीता, जो भारतीय हॉकी के पुनरुत्थान का संकेत था।

हॉकी खेल के नियम और प्रारूप

फील्ड हॉकी 11-11 खिलाड़ियों की दो टीमों के बीच घास या कृत्रिम टर्फ पर खेला जाने वाला खेल है। मैच 60 मिनट का होता है, जिसे चार 15 मिनट के क्वार्टर में विभाजित किया जाता है। खेल का उद्देश्य विरोधी टीम के गोल में गेंद डालकर अधिक गोल स्कोर करना है।

मुख्य नियम:

  • खिलाड़ी केवल स्टिक के सपाट हिस्से से ही गेंद को हिट कर सकते हैं।
  • गोल केवल शूटिंग सर्कल (D) के अंदर से ही मान्य होते हैं।
  • खिलाड़ी अपने पैरों या शरीर के किसी अन्य हिस्से से जानबूझकर गेंद को नहीं रोक सकते (गोलकीपर को छोड़कर)।
  • डंजरस प्ले, हाई स्टिक, और ऑब्स्ट्रक्शन जैसे फाउल पेनल्टी कॉर्नर या पेनल्टी स्ट्रोक में परिणत हो सकते हैं।

भारतीय हॉकी का पतन और चुनौतियां

1980 के मॉस्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद भारतीय हॉकी में धीरे-धीरे गिरावट आने लगी। कई कारणों ने इस पतन में योगदान दिया:

खेल के नियमों में बदलाव

1970 के दशक में कृत्रिम टर्फ की शुरुआत ने खेल की गतिशीलता को पूरी तरह बदल दिया। भारतीय खिलाड़ी घास के मैदानों पर बेहतर प्रदर्शन करते थे, जहां उनकी कौशल और बॉल कंट्रोल की तकनीक अधिक प्रभावी थी। कृत्रिम टर्फ पर खेल तेज और अधिक फिजिकल हो गया, जिसके लिए भारत तैयार नहीं था।

बुनियादी ढांचे की कमी

देश में विश्व स्तरीय हॉकी सुविधाओं की कमी रही है। जबकि यूरोपीय और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को उच्च गुणवत्ता वाली ट्रेनिंग सुविधाएं मिलती रहीं, भारतीय खिलाड़ियों को बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ा।

क्रिकेट का बढ़ता प्रभुत्व

भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता ने अन्य खेलों को पीछे धकेल दिया। मीडिया कवरेज, प्रायोजन, और युवा प्रतिभाओं का ध्यान क्रिकेट की ओर चला गया, जिससे हॉकी को नुकसान हुआ।

प्रशासनिक समस्याएं

भारतीय हॉकी महासंघ में आंतरिक कलह और खराब प्रबंधन ने खेल के विकास को बाधित किया। कोचिंग, चयन प्रक्रिया, और खिलाड़ी कल्याण में कमियां स्पष्ट दिखीं।

भारतीय हॉकी का पुनरुत्थान

पिछले दशक में भारतीय हॉकी ने अपने पुनरुत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। कई सकारात्मक बदलाव देखे गए हैं:

हॉकी इंडिया लीग (HIL)

2013 में शुरू की गई हॉकी इंडिया लीग ने भारतीय हॉकी को नई ऊर्जा प्रदान की। यह फ्रेंचाइजी-आधारित प्रतियोगिता थी जिसने युवा खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन करने का मौका दिया और खेल को अधिक दृश्यता प्रदान की।

बेहतर ट्रेनिंग सुविधाएं

सरकार और निजी संगठनों ने राष्ट्रीय हॉकी अकादमियों और ट्रेनिंग सेंटरों में निवेश किया है। बेंगलुरु में SAI सेंटर और अन्य शहरों में विश्व स्तरीय सुविधाएं विकसित की गई हैं।

विदेशी कोचों की नियुक्ति

ग्राहम रीड, स्जोर्ड मारिजने, और अब ग्राहम रीड जैसे अनुभवी विदेशी कोचों ने भारतीय टीम को आधुनिक तकनीकों और रणनीतियों से परिचित कराया है।

टोक्यो 2020 की सफलता

2021 के टोक्यो ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल बाद कांस्य पदक जीतकर भारतीय हॉकी के नए युग की शुरुआत की। महिला टीम ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए सेमीफाइनल में प्रवेश किया।

वर्तमान भारतीय हॉकी टीम और स्टार खिलाड़ी

आज की भारतीय हॉकी टीम युवा प्रतिभा और अनुभव का सुंदर मिश्रण है। कुछ प्रमुख खिलाड़ी जो टीम का नेतृत्व कर रहे हैं:

हरमनप्रीत सिंह

हरमनप्रीत सिंह वर्तमान में भारतीय टीम के कप्तान और विश्व के सर्वश्रेष्ठ ड्रैग-फ्लिकर्स में से एक हैं। उनकी पेनल्टी कॉर्नर क्षमता टीम की सबसे बड़ी ताकत है।

पीआर श्रीजेश

पीआर श्रीजेश भारतीय हॉकी के सबसे अनुभवी गोलकीपर हैं और उन्हें ‘दीवार’ के नाम से जाना जाता है। उनकी रिफ्लेक्स और गेम रीडिंग असाधारण है।

मनप्रीत सिंह

पूर्व कप्तान मनप्रीत सिंह टीम के मिडफील्ड के स्तंभ हैं। उनका नेतृत्व और अनुभव टीम के लिए अमूल्य है।

अन्य उभरते सितारे

अभिषेक, शमशेर सिंह, सुखजीत सिंह, और हार्दिक सिंह जैसे युवा खिलाड़ी भारतीय हॉकी का भविष्य हैं।

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महिला हॉकी में भारत की बढ़ती ताकत

भारतीय महिला हॉकी टीम ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। टोक्यो ओलंपिक में उनका प्रदर्शन ऐतिहासिक था, जहां वे पहली बार सेमीफाइनल में पहुंची थीं। रानी रामपाल की कप्तानी में टीम ने विश्व को दिखाया कि भारतीय महिलाएं भी विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं।

2022 में बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय महिला हॉकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीता। यह भारतीय महिला हॉकी के लिए एक मील का पत्थर था।

वंदना कटारिया, नवनीत कौर, सलीमा टेटे, और नेहा गोयल जैसी खिलाड़ियां भारतीय महिला हॉकी के चमकते सितारे हैं।

हॉकी और भारतीय संस्कृति

हॉकी केवल एक खेल नहीं है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, और मणिपुर जैसे राज्यों में हॉकी गहराई से जड़ें जमा चुकी है। छोटे गांवों और कस्बों में बच्चे अभी भी धूल भरे मैदानों पर हॉकी स्टिक लेकर अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते हैं।

हॉकी ने समाज को एकजुट किया है और विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को एक मंच पर लाया है। यह खेल राष्ट्रीय गौरव और एकता का प्रतीक बन गया है।

हॉकी के विकास में सरकार और संस्थाओं की भूमिका

भारतीय हॉकी के विकास में खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI), और हॉकी इंडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विभिन्न योजनाओं और पहलों के माध्यम से खिलाड़ियों को वित्तीय सहायता, ट्रेनिंग सुविधाएं, और अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर प्रदान किया जा रहा है।

टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS)

यह योजना उन एथलीटों को सहायता प्रदान करती है जिनके पास ओलंपिक में पदक जीतने की क्षमता है। हॉकी खिलाड़ियों को इस योजना के तहत काफी लाभ मिला है।

खेलो इंडिया कार्यक्रम

खेलो इंडिया ने ग्रासरूट स्तर पर खेल संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। युवा प्रतिभाओं की पहचान और उन्हें तराशने में यह कार्यक्रम महत्वपूर्ण साबित हुआ है।

हॉकी का भविष्य और आगे की चुनौतियां

भारतीय हॉकी ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय सुधार दिखाया है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियां हैं:

विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा

देश भर में अधिक कृत्रिम टर्फ मैदानों की आवश्यकता है। छोटे शहरों और गांवों में भी विश्व स्तरीय सुविधाएं होनी चाहिए ताकि प्रतिभाओं को सही प्लेटफॉर्म मिल सके।

मीडिया कवरेज और प्रायोजन

हॉकी को अधिक मीडिया कवरेज और प्रायोजन की आवश्यकता है। क्रिकेट की तुलना में हॉकी खिलाड़ियों को अभी भी कम पहचान और वित्तीय सहायता मिलती है।

युवा प्रतिभाओं का विकास

स्कूल और कॉलेज स्तर पर हॉकी को बढ़ावा देने की जरूरत है। युवाओं को इस खेल की ओर आकर्षित करने के लिए अधिक टूर्नामेंट और प्रोत्साहन कार्यक्रम आवश्यक हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा

ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, नीदरलैंड, और जर्मनी जैसी शक्तिशाली टीमों के साथ लगातार प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत को अपने खेल मानकों को और ऊंचा उठाना होगा।

हॉकी को फिर से गौरवशाली बनाने के उपाय

भारतीय हॉकी को उसके पुराने स्वर्णिम दिनों में वापस लाने के लिए एक व्यापक और समन्वित प्रयास की आवश्यकता है। कुछ महत्वपूर्ण कदम जो उठाए जा सकते हैं:

घरेलू लीग को मजबूत करना

हॉकी इंडिया लीग को फिर से शुरू करना और इसे अधिक आकर्षक बनाना आवश्यक है। IPL की तर्ज पर एक मजबूत फ्रेंचाइजी मॉडल युवा खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करेगा और खेल को लोकप्रिय बनाएगा।

स्कूली शिक्षा में हॉकी का समावेश

प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर हॉकी को अनिवार्य खेल के रूप में शामिल करना चाहिए। स्कूलों में नियमित हॉकी टूर्नामेंट आयोजित करने से ग्रासरूट स्तर पर प्रतिभाओं का विकास होगा।

खिलाड़ी कल्याण और वित्तीय सुरक्षा

हॉकी खिलाड़ियों को बेहतर वेतन, पेंशन योजनाएं, और स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना होगा। जब युवा देखेंगे कि हॉकी में करियर सुरक्षित है, तो वे इस खेल की ओर आकर्षित होंगे।

मीडिया और ब्रांडिंग

हॉकी मैचों का व्यापक प्रसारण और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपस्थिति बढ़ानी होगी। सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं से जुड़ने और खेल को रोमांचक तरीके से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की मेजबानी

भारत में अधिक अंतरराष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंट आयोजित करने से खेल को दृश्यता मिलेगी और घरेलू दर्शकों में रुचि बढ़ेगी।

हॉकी के प्रेरक कहानियां और किस्से

भारतीय हॉकी के इतिहास में कई प्रेरणादायक कहानियां हैं जो युवा पीढ़ी को प्रेरित करती हैं:

बलबीर सिंह सीनियर की विरासत

बलबीर सिंह सीनियर ने 1948, 1952 और 1956 के ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीते। 1952 के ओलंपिक फाइनल में उन्होंने पांच गोल दागे थे – यह रिकॉर्ड आज भी अटूट है।

दिलीप टिर्की – आदिवासी गांव से अंतरराष्ट्रीय मंच तक

ओडिशा के एक आदिवासी गांव से आए दिलीप टिर्की ने कठिन परिस्थितियों से लड़कर भारतीय हॉकी टीम के कप्तान बनने का सपना पूरा किया। उनकी कहानी साबित करती है कि प्रतिभा किसी भी पृष्ठभूमि से आ सकती है।

रानी रामपाल का संघर्ष

रानी रामपाल ने गरीबी और सामाजिक बाधाओं को पार करके महिला हॉकी टीम की कप्तान बनीं। उनकी मां ने घरेलू काम करके उनके हॉकी के सपने को साकार किया।

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हॉकी और राष्ट्रीय पहचान

हॉकी केवल एक खेल नहीं है – यह भारत की राष्ट्रीय पहचान का अभिन्न हिस्सा है। जब भारतीय हॉकी टीम अंतरराष्ट्रीय मंच पर उतरती है, तो 140 करोड़ भारतीयों के सपने और आशाएं उसके साथ होती हैं।

स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती दशकों में, जब भारत एक नए राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा था, तब हॉकी ने राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बनकर देश को एकजुट किया। ओलंपिक में हर स्वर्ण पदक ने साबित किया कि भारत विश्व मंच पर उत्कृष्टता हासिल कर सकता है।

आज भी, जब भारतीय हॉकी टीम जीतती है, तो पूरा देश गर्व से भर जाता है। यह खेल हमें याद दिलाता है कि एकता, अनुशासन और मेहनत से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

निष्कर्ष

हॉकी भारत के खेल इतिहास का सबसे शानदार अध्याय है। यह वह खेल है जिसने भारत को विश्व मंच पर अद्वितीय पहचान दिलाई और हमें आठ ओलंपिक स्वर्ण पदक दिए। मेजर ध्यानचंद जैसे महान खिलाड़ियों ने इस खेल को कला के स्तर तक पहुंचाया और पूरी दुनिया को अपने हुनर से चमत्कृत किया।

हालांकि 1980 के बाद भारतीय हॉकी में गिरावट आई, लेकिन पिछले दशक में हमने एक सकारात्मक बदलाव देखा है। टोक्यो ओलंपिक 2020 में कांस्य पदक जीतकर भारतीय हॉकी ने अपने पुनरुत्थान का संकेत दिया है। महिला हॉकी टीम ने भी शानदार प्रदर्शन करके यह साबित किया है कि भारत फिर से हॉकी की महाशक्ति बन सकता है।

आज की जरूरत है कि हम हॉकी को वह सम्मान और संसाधन दें जिसके वह हकदार है। बेहतर बुनियादी ढांचा, ग्रासरूट स्तर पर विकास, खिलाड़ी कल्याण, और मीडिया कवरेज के माध्यम से हम हॉकी को फिर से भारत का सबसे लोकप्रिय और सफल खेल बना सकते हैं।

हॉकी सिर्फ एक खेल नहीं है – यह राष्ट्रीय गौरव, एकता और उत्कृष्टता का प्रतीक है। जब हम हॉकी के विकास में निवेश करते हैं, तो हम वास्तव में भारत के युवाओं के भविष्य और राष्ट्र के सम्मान में निवेश करते हैं। आइए, हम सब मिलकर संकल्प लें कि भारतीय हॉकी अपने स्वर्णिम दिनों को फिर से हासिल करे और विश्व मंच पर भारत का नाम रोशन करे।

हॉकी से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

प्रश्न 1: क्या हॉकी आधिकारिक रूप से भारत का राष्ट्रीय खेल है?

उत्तर: नहीं, आधिकारिक तौर पर भारत सरकार ने किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल घोषित नहीं किया है। 2012 में सूचना के अधिकार (RTI) के तहत खेल मंत्रालय ने स्पष्ट किया था कि भारत का कोई आधिकारिक राष्ट्रीय खेल नहीं है। हालांकि, फील्ड हॉकी को परंपरागत रूप से और लोकप्रिय धारणा में भारत का राष्ट्रीय खेल माना जाता है क्योंकि इसने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वाधिक गौरव और ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाए हैं।

प्रश्न 2: भारत ने हॉकी में कुल कितने ओलंपिक पदक जीते हैं?

उत्तर: भारत ने हॉकी में कुल 12 ओलंपिक पदक जीते हैं, जिनमें 8 स्वर्ण, 1 रजत और 3 कांस्य पदक शामिल हैं। स्वर्ण पदक 1928, 1932, 1936, 1948, 1952, 1956, 1964 और 1980 में जीते गए। रजत पदक 1960 में मिला, और कांस्य पदक 1968, 1972 और 2020 (टोक्यो) में प्राप्त हुए। यह विश्व रिकॉर्ड है और कोई भी देश हॉकी में 8 ओलंपिक स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया है।

प्रश्न 3: मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ क्यों कहा जाता है?

उत्तर: मेजर ध्यानचंद को उनकी असाधारण बॉल कंट्रोल क्षमता और गोल करने के अद्भुत हुनर के कारण ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाता है। उनकी स्टिक से गेंद इतनी चिपकी रहती थी कि विरोधी टीमें अक्सर उनकी हॉकी स्टिक को चेक करती थीं यह सोचकर कि शायद उसमें चुंबक लगा है। उन्होंने अपने करियर में 400 से अधिक गोल किए और तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में उनके शानदार प्रदर्शन ने पूरी दुनिया को चमत्कृत कर दिया। उनके सम्मान में भारत में 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है।

प्रश्न 4: भारतीय हॉकी में 1980 के बाद गिरावट क्यों आई?

उत्तर: 1980 के बाद भारतीय हॉकी में गिरावट के कई कारण थे: (1) कृत्रिम टर्फ की शुरुआत – भारतीय खिलाड़ी घास के मैदानों पर बेहतर थे, कृत्रिम टर्फ ने खेल को तेज और अधिक फिजिकल बना दिया। (2) बुनियादी ढांचे की कमी – विश्व स्तरीय ट्रेनिंग सुविधाओं का अभाव। (3) क्रिकेट का बढ़ता प्रभुत्व – मीडिया कवरेज, प्रायोजन और युवा प्रतिभाओं का ध्यान क्रिकेट की ओर चला गया। (4) प्रशासनिक समस्याएं – खराब प्रबंधन और आंतरिक कलह ने विकास को बाधित किया।

प्रश्न 5: वर्तमान में भारतीय हॉकी की स्थिति क्या है?

उत्तर: वर्तमान में भारतीय हॉकी पुनरुत्थान के दौर से गुजर रही है। 2021 के टोक्यो ओलंपिक में 41 साल बाद कांस्य पदक जीतकर पुरुष टीम ने अपनी वापसी का संकेत दिया। महिला टीम ने 2022 कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीता। वर्तमान में भारतीय पुरुष टीम विश्व रैंकिंग में टॉप 5 में है। बेहतर ट्रेनिंग सुविधाएं, विदेशी कोच, और युवा प्रतिभाओं के उभार से भारतीय हॉकी फिर से विश्व मंच पर अपनी पहचान बना रही है। हरमनप्रीत सिंह, पीआर श्रीजेश जैसे खिलाड़ी भारत की नई उम्मीद हैं।

जय हिंद! जय भारतीय हॉकी!

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